Jadassohn–Lewandowsky Syndrome (जिसे अंग्रेजी में Jadassohn–Lewandowsky Syndrome कहते हैं) एक दुर्लभ वंशानुगत (inherits) त्वचा संबंधी विकार है, जिसे अंग्रेजी नाम से Pachyonychia Congenita (PC) टाइप 1 भी कहा जाता है।
यह रोग मुख्यतः नाखून (nails), हथेलियाँ व तलवें (palms & soles) तथा मुँह की श्लेष्मा (mucosa) को प्रभावित करता है।
यह autosomal dominant तरीके से विरासत में मिलता है—यानी इस दोष को माता-पिता में से एक से मिल जाना पर्याप्त हो सकता है।
Jadassohn–Lewandowsky Syndrome क्या होता है? (What is Jadassohn–Lewandowsky Syndrome)?
– जीनों (genes) में हुई म्यूटेशन (mutation) इस रोग का कारण है- विशेष रूप से केराटिन (keratin) नामक प्रोटीन बनाने वाले जीन जैसे KRT6A, KRT16 (टाइप 1 में) प्रभावित होते हैं।
– इन म्यूटेशनों के कारण नाखूनों के नीचे की केतारिन सामग्री असाधारण रूप से घनी हो जाती है, नाखून बहुत मोटे, विकृत व पर्तदार (thickened, dystrophic) हो जाते हैं।
– हाँथ-पैर की हथेलियाँ व तलवों की त्वचा (palmar-plantar skin) पर अत्यधिक कर्निफिकेशन (hyperkeratosis) — ज्यादा छाल (calluses), फटने-चटकने (fissures) की शिकायत हो सकती है।
– मुँह की श्लेष्मा (oral mucosa) पर सफेद पट्टियाँ (leukokeratosis) बन सकती हैं।
– हाथ व पैरों की ज्यादा पसीना (hyperhidrosis) हो सकती है।
Jadassohn–Lewandowsky Syndrome कारण
- यह रोग मुख्य रूप से मुटेशन के कारण होता है, विशेष रूप से केराटिन जीन (KRT6A, KRT16) में — जो कि त्वचा, नाखून व अन्य एपिथेलियल (epithelial) संरचनाओं में मौजूद होते हैं।
- इस रोग का उत्सर्ग (inheritance) ऑटोसोमल डोमिनेंट (autosomal dominant) होता है। अर्थात् अगर एक माता-पिता में दोषी जीन हो, तो बच्चे को यह रोग पाए जाने की संभावना होती है।
- दुर्लभ मामलों में यह नए म्यूटेशन (de novo mutation) के कारण भी हो सकता है, जहाँ परिवार में पहले से कोई रोगी न हो।
Jadassohn–Lewandowsky Syndrome लक्षण (Symptoms of Jadassohn–Lewandowsky Syndrome)
– नाखूनों की मोटाई व विकृति: सभी (या अधिकांश) संख्या में नाखून बहुत मोटे, पर्तदार, पीले-भूरे रंग के हो सकते हैं।
– हाथ-पांव की तलवों व हथेलियों पर गहरी छालें (thick calluses), फट-चटक जाना, दर्दभरी चलने-फिरने में समस्या।
– मुँह की श्लेष्मा पर सफेद पट्टियाँ (oral leukokeratosis) जो कभी-कभी गले (larynx) को भी प्रभावित कर सकती हैं।
– हाथ-पैरों में अतिपसीना (hyperhidrosis) व उसके कारण त्वचा में छाले या सूजन।
– शरीर के अन्य हिस्सों पर फोलिक्यूलर केराटोसिस (follicular keratotic papules)-- छोटे-छोटे कड़े उभार जो बाल वर्ग (hair follicles) के आसपास होते हैं।
Jadassohn–Lewandowsky Syndrome कैसे पहचाने
- चिकित्सक द्वारा नाखून, हथेली/तलवों, मुँह की श्लेष्मा की जाँच के द्वारा संकेत मिल सकते हैं।
- रोग का इतिहास: जन्म के समय या जन्म के तुरंत बाद से लक्षण दिखने लग सकते हैं।
- परिवार में इस तरह के लक्षणों का होना (वंशानुगत इतिहास)-- यदि मौजूद हो तो संदेह बढ़ता है।
- आवश्यक हो तो जीन परीक्षण (genetic testing) द्वारा KRT6A, KRT16 आदि जीनों में म्यूटेशन देखे जा सकते हैं।
Jadassohn–Lewandowsky Syndrome इलाज
इस रोग का कोई “पूरी तरह ठीक करने वाला” (curative) इलाज फिलहाल उपलब्ध नहीं है, लेकिन लक्षणों को नियंत्रित करने व जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाने के उपाय मौजूद हैं।
- केराटोलिटिक उपाय: मोटी छालों व नाखून की मोटाई को कम करने के लिए यूरिया युक्त क्रीम, सैलिसिलिक एसिड आदि उपयोग किए जाते हैं।
- मोटे नाखूनों का यंत्रिक/शल्य (mechanical/surgical) प्रबंधन: उदाहरण के लिए नाखूनों को नियमित छोटी काट-छाँट देना, फाइल करना, कभी-कभी सर्जरी का विकल्प।
- पसीने व छाले (hyperhidrosis) की रोकथाम: पसीना कम करने के उपाय जैसे हाथ-पैर को शुष्क रखना, वेंटिलेशन अच्छी रखना।
- समर्थनात्मक देखभाल: दर्द व असुविधा के लिए पृष्ठभूमि देखभाल; यदि मुँह या गले में समस्या हो तो ओटो/लैरिन्जोलॉजिस्ट की सलाह।
- जेनेटिक काउंसलिंग: परिवार में होने वाले मामलों को समझने व भविष्य की पीढ़ियों हेतु सलाह देने के लिए।
Jadassohn–Lewandowsky Syndrome घरेलू उपाय
– हाथ-पैर की तलवों व हथेलियों को नियमित हल्के एक्सफोलिएशन (exfoliation) व मॉइश्चराइजेशन देना मददगार हो सकता है।
– मोटे नाखूनों को साफ-सुथरा रखना, नियमित छोटा रखना व नाखून फाइल करना।
– ऐसे जूते व मोजे पहनना जिनमें पैर को अच्छी वेंटिलेशन मिले व दबाव कम हो।
– पसीना आने पर पैर-हाथों को समय-समय पर धोना व अच्छी तरह सुखाना।
– संतुलित आहार व पर्याप्त पानी लेना ताकि त्वचा व नाखूनों की स्थिति बेहतर बनी रहे।
सावधानियाँ
– यदि नाखूनों के नीचे से संक्रमण (infection) हो रहा हो, तो उसे जल्द-से-जल्द चिकित्सक से दिखाएँ।
– बहुत गहरी फट (fissure) या छाला होने पर चलने-फिरने में समस्या हो सकती है, इसलिए समयसमय पर घेरे देखें।
– मुँह या गले में सफेद पट्टियों के साथ आवाज में बदलाव, खाने में कठिनाई या सांस लेने में समस्या हो रही हो, तो तुरंत विशेषज्ञ से परामर्श करें।
– किसी भी घरेलू उपाय या क्रीम को बिना चिकित्सक की सलाह के लगातार न चलाएँ—कुछ दवाइयाँ बच्चे या गर्भवती महिलाओं में उपयोग योग्य नहीं हो सकतीं।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. क्या यह रोग बचपन में ही दिखता है?
हाँ — अक्सर जन्म के तुरंत बाद या शैशवावस्था में ही देखे जाने वाले लक्षण मिलते हैं।
Q2. क्या इसका इलाज संभव है?
पूरी तरह से समाप्त करना फिलहाल संभव नहीं है लेकिन लक्षणों को नियंत्रित करना, जीवन-शैली सुधरना और सहायक देखभाल संभव है।
Q3. क्या यह संक्रामक (contagious) है?
नहीं — यह संक्रामक नहीं है, बल्कि आनुवंशिक (genetic) रोग है।
Q4. क्या यह पुरुषों और महिलाओं में समान दिखता है?
हां, दोनों-में हो सकता है। लक्षण व्यक्ति-विशिष्ट होते हैं।
Q5. क्या परिवार में इसके होने पर भविष्य की पीढ़ियों में रोकथाम संभव है?
क्योंकि यह आनुवंशिक रूप से मिलता है, जेनेटिक काउंसलिंग संभव है ताकि परिवार और भविष्य की पीढ़ियों के बारे में जानकारी मिले।
निष्कर्ष
एक दुर्लभ लेकिन महत्वपूर्ण आनुवंशिक त्वचा रोग है, जिसमें नाखून, हथेली–तलवा व मुँह की श्लेष्मा प्रमुख रूप से प्रभावित होती है। शुरुआती पहचान, समय-पर उचित देखभाल व जीवन-शैली में सुधार इसे नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। यदि इस तरह के लक्षण देखें जाने पर त्वचा विशेषज्ञ व आनुवंशिक परामर्शदाता से जल्दी मिलना लाभदायक रहेगा।
नोट: यह जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्य से है। यदि आपको या आपके परिचितों को इस तरह के लक्षण हों, तो त्वचा (डर्मेटोलॉजी) विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।