Congenital Posterior Urethral Valves (PUV) एक दुर्लभ लेकिन गंभीर जन्मजात मूत्र रोग है, जो केवल पुरुष शिशुओं को प्रभावित करता है। इसमें मूत्रमार्ग (urethra) के पिछले हिस्से में झिल्लियों या वाल्व्स का निर्माण हो जाता है, जो मूत्र के सामान्य बहाव में रुकावट पैदा करते हैं। यह रुकावट धीरे-धीरे मूत्राशय (bladder), मूत्रनली (ureters) और गुर्दों (kidneys) को प्रभावित करती है।
समय रहते निदान और उपचार नहीं होने पर यह स्थिति गंभीर गुर्दा विकारों का कारण बन सकती है।
Congenital Posterior Urethral Valves क्या होता है ? (What is Congenital Posterior Urethral Valves?)
PUV में भ्रूण के विकास के दौरान मूत्रमार्ग के अंदर पतली झिल्लियों का निर्माण हो जाता है, जो मूत्र मार्ग को संकीर्ण बना देती हैं। यह मूत्र के बहाव को रोकती हैं, जिससे मूत्राशय पर दबाव बढ़ता है और मूत्र ऊपर की ओर लौटकर गुर्दों को प्रभावित करता है। इससे Hydronephrosis, Vesicoureteral Reflux, और यहां तक कि Kidney Failure भी हो सकता है।
Congenital Posterior Urethral Valves कारण (Causes)
- भ्रूण के मूत्र प्रणाली के विकास में गड़बड़ी
- जन्म से पूर्व urethra में posterior valves का निर्माण
- यह केवल लड़कों में पाया जाता है
- सटीक कारण अज्ञात है
- अधिकतर मामलों में कोई पारिवारिक इतिहास नहीं होता
Congenital Posterior Urethral Valves लक्षण (Symptoms)
जन्म से पहले (Prenatal):
- अल्ट्रासाउंड में मूत्राशय का असामान्य रूप से बड़ा होना
- Hydronephrosis (गुर्दे में सूजन)
- Amniotic fluid में कमी (Oligohydramnios)
- भ्रूण की सामान्य वृद्धि में कमी
जन्म के बाद (Postnatal):
- कमजोर मूत्र प्रवाह या रुक-रुक कर पेशाब आना
- बार-बार पेशाब या बिल्कुल पेशाब न आना
- मूत्र संक्रमण (UTI)
- पेट में सूजन
- पेशाब में खून
- गुर्दों की कार्यक्षमता में गिरावट
- विकास में देरी या वजन न बढ़ना
- शिशु अधिक चिड़चिड़ा या रोता रहता है
निदान (Diagnosis)
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Prenatal Ultrasound:
- भ्रूण में मूत्र प्रणाली की गड़बड़ी का संकेत
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Postnatal Ultrasound:
- जन्म के बाद मूत्राशय और गुर्दों का आकार देखना
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Voiding Cystourethrogram (VCUG):
- डायग्नोसिस के लिए सबसे उपयोगी
- पेशाब करते समय मूत्र मार्ग की तस्वीर
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Serum Creatinine और Electrolyte Tests:
- गुर्दों की कार्यक्षमता का मूल्यांकन
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Cystoscopy:
- एंडोस्कोप द्वारा मूत्रमार्ग के अंदर झिल्लियों को देखना
Congenital Posterior Urethral Valves इलाज (Treatment)
1. प्रारंभिक उपचार (Initial Management):
- कैथेटर द्वारा मूत्र निकासी
- IV Fluids, Electrolyte सुधार, और Infection control
2. अंतिम उपचार (Definitive Treatment):
- Cystoscopic Valve Ablation (एंडोस्कोपिक सर्जरी):
- पतली झिल्लियों को हटाना या तोड़ना
- सबसे सामान्य और प्रभावी उपाय
3. Vesicostomy (कुछ मामलों में):
- मूत्राशय से बाहर छोटा रास्ता बनाना, जब एंडोस्कोपी संभव न हो
4. Renal Replacement Therapy (गंभीर मामलों में):
- Dialysis या Kidney Transplant, यदि किडनी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाए
घरेलू देखभाल (Home Care)
- डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं और एंटीबायोटिक का नियमित उपयोग
- पेशाब की मात्रा और प्रवाह पर निरंतर निगरानी
- संक्रमण के लक्षणों पर ध्यान देना: बुखार, पेशाब में बदबू, चिड़चिड़ापन
- Hydration बनाए रखना
- फॉलो-अप विज़िट को कभी न छोड़ें
सावधानियाँ (Precautions)
- समय पर मूत्र संबंधी समस्या की पहचान करें
- बार-बार संक्रमण या पेशाब में रुकावट को अनदेखा न करें
- नियमित रूप से किडनी फंक्शन टेस्ट कराते रहें
- यदि मूत्र प्रवाह में बदलाव हो तो तुरंत डॉक्टर से मिलें
रोकथाम (Prevention)
- यह एक जन्मजात विकार है, इसलिए रोकथाम संभव नहीं है
- लेकिन गर्भावस्था के दौरान समय पर अल्ट्रासाउंड से इसका संदेह लगाया जा सकता है
- परिवार में किसी बच्चे को PUV रहा हो, तो अगली गर्भावस्था में विशेष निगरानी रखें
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: क्या PUV केवल लड़कों में होता है?
उत्तर: हां, यह विकार केवल पुरुष नवजातों में पाया जाता है।
प्रश्न 2: क्या PUV का इलाज संभव है?
उत्तर: हां, सर्जरी द्वारा झिल्लियों को हटाकर मूत्र प्रवाह सामान्य किया जा सकता है।
प्रश्न 3: क्या यह किडनी फेलियर का कारण बन सकता है?
उत्तर: अगर समय पर इलाज न हो, तो PUV से गंभीर गुर्दा क्षति या Kidney Failure हो सकता है।
प्रश्न 4: क्या यह स्थिति जीवनभर रहती है?
उत्तर: झिल्लियाँ सर्जरी से हटाई जा सकती हैं, लेकिन गुर्दों की निगरानी जीवनभर करनी पड़ती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Congenital Posterior Urethral Valves (PUV) एक गंभीर लेकिन उपचार योग्य जन्मजात मूत्र रोग है, जो शिशु के मूत्रमार्ग में झिल्लियों के कारण होता है। इसका समय पर निदान और एंडोस्कोपिक सर्जरी द्वारा इलाज बच्चे की किडनी को स्थायी नुकसान से बचा सकता है। उपचार के बाद भी लंबे समय तक निगरानी और देखभाल जरूरी है ताकि भविष्य में गुर्दा की कोई जटिलता न हो।