फ्लैंक पेन सिंड्रोम (Flank Pain Syndrome) एक ऐसा स्वास्थ्य समस्या है जिसमें पेट के दोनों किनारों या कमर के पास स्थित हिस्से में दर्द महसूस होता है। यह दर्द अक्सर तीव्र या धीमा हो सकता है और यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है।
Flank Pain आमतौर पर गुर्दे (Kidneys), पेशियों (Muscles), या किडनी स्टोन्स (Kidney Stones) से जुड़ा हो सकता है। यह किसी गंभीर रोग का संकेत भी हो सकता है इसलिए इसका समय पर निदान करना बहुत जरूरी है।
फ्लैंक पेन सिंड्रोम क्या होता है? (What is Flank Pain Syndrome?)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम में कمر के दोनों ओर, पेट के किनारे या पसलियों के नीचे दर्द होता है।
- यह दर्द अचानक या धीरे-धीरे शुरू हो सकता है।
- दर्द स्थायी या आवर्ती (Recurring) भी हो सकता है।
- कभी-कभी इसे पेट में सूजन, बुखार या पेशाब में जलन के साथ देखा जा सकता है।
फ्लैंक पेन सिंड्रोम कारण (Causes of Flank Pain Syndrome)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- गुर्दे की पथरी (Kidney Stones) – मूत्रमार्ग में पथरी होने पर तेज दर्द।
- गुर्दे का संक्रमण (Kidney Infection / Pyelonephritis) – पेशाब में जलन, बुखार और फ्लैंक दर्द।
- पेशियों का खिंचाव (Muscle Strain) – लंबे समय तक गलत पोजीशन में बैठना या भारी वजन उठाना।
- गुर्दे की चोट (Kidney Injury) – दुर्घटना या चोट लगने पर।
- यूरिनरी ट्रैक्ट ब्लॉकेज (Urinary Tract Obstruction) – पेशाब के रास्ते में बाधा।
- गुर्दे की सूजन (Kidney Inflammation / Glomerulonephritis)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम लक्षण (Symptoms of Flank Pain Syndrome)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं:
- कमर या पेट के दोनों ओर दर्द (Pain in lower back or sides)
- बुखार और ठंड लगना (Fever and chills)
- पेशाब में जलन या बार-बार पेशाब आना (Burning sensation during urination / Frequent urination)
- मतली और उल्टी (Nausea and vomiting)
- मूत्र का रंग बदलना (Urine color change – dark or blood in urine)
- पीठ या पसलियों के पास सूजन (Swelling near kidneys or back)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम कैसे पहचाने (How to Identify)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम को पहचानने के लिए डॉक्टर अक्सर निम्नलिखित परीक्षण करते हैं:
- शारीरिक जांच (Physical Examination) – पीठ दबाने पर दर्द की तीव्रता देखी जाती है।
- यूरिन टेस्ट (Urine Test) – पेशाब में संक्रमण या रक्त की जांच।
- ब्लड टेस्ट (Blood Test) – गुर्दे के फंक्शन और संक्रमण की जांच।
- इमेजिंग टेस्ट (Imaging Test) – अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन या एमआरआई।
फ्लैंक पेन सिंड्रोम इलाज (Treatment of Flank Pain Syndrome)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम का इलाज इसके कारण पर निर्भर करता है:
- 
दवाईयां (Medications) - दर्द और सूजन कम करने के लिए NSAIDs या Painkillers।
 - संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक्स।
 
- 
सर्जरी (Surgery) - अगर किडनी स्टोन बहुत बड़े हैं या ब्लॉकेज है तो सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।
 
- 
फिजियोथेरेपी (Physiotherapy) - मांसपेशियों के खिंचाव या चोट के लिए।
 
घरेलू उपाय (Home Remedies)
- पर्याप्त पानी पीना (Drink plenty of water)
- गर्म पानी की सिकाई (Warm compress on the affected area)
- हल्का व्यायाम और स्ट्रेचिंग (Light exercise and stretching)
- नमक और मसाले कम खाना (Reduce salt and spices)
- प्रोसेस्ड फूड और जंक फूड से बचना (Avoid processed foods)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम कैसे रोके (Prevention)
- पर्याप्त पानी पीते रहें (Stay hydrated)
- संतुलित और हेल्दी डाइट (Balanced and healthy diet)
- भारी वजन उठाते समय सावधानी (Care while lifting heavy weights)
- समय-समय पर स्वास्थ्य जांच (Regular health checkups)
- पेशाब रोककर न रखना (Avoid holding urine for long)
सावधानियाँ (Precautions)
- तेज या लगातार दर्द होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
- बिना दवा के दर्द न दबाएँ।
- अगर पेशाब में खून दिखे तो तुरंत टेस्ट कराएँ।
- गर्म या भारी व्यायाम तब तक न करें जब तक दर्द न कम हो।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. क्या फ्लैंक पेन सिंड्रोम केवल किडनी से जुड़ा होता है?
नहीं, यह मांसपेशियों, किडनी, मूत्र मार्ग या अन्य अंगों से भी संबंधित हो सकता है।
2. क्या यह बच्चों में भी हो सकता है?
हाँ, बच्चों में भी संक्रमण या पथरी के कारण फ्लैंक पेन हो सकता है।
3. घरेलू उपाय पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं?
हल्के मामलों में मदद मिल सकती है, लेकिन गंभीर कारणों में डॉक्टर की सलाह जरूरी है।
4. दर्द अचानक शुरू हुआ है, क्या यह इमरजेंसी है?
अगर दर्द बहुत तेज है, पेशाब में खून है या बुखार है, तो इसे इमरजेंसी माना जाना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
फ्लैंक पेन सिंड्रोम एक सामान्य लेकिन गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। समय पर पहचान और इलाज महत्वपूर्ण है। उचित डायग्नोसिस, दवाई, फिजियोथेरेपी और जीवनशैली में सुधार से इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।