Intrauterine Infection जिसे हिंदी में गर्भाशय अंदरूनी संक्रमण कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें गर्भाशय (Uterus) के अंदर बैक्टीरिया, वायरस या अन्य सूक्ष्मजीव संक्रमण पैदा कर देते हैं। यह आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के बाद होता है। इस संक्रमण से गर्भ में पल रहे शिशु और मातृ स्वास्थ्य दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
Intrauterine Infection क्या होता है? (What is Intrauterine Infection?)
गर्भाशय अंदरूनी संक्रमण तब होता है जब गर्भाशय के अंदर बैक्टीरिया या वायरस प्रवेश कर जाते हैं और वहाँ तेजी से बढ़ने लगते हैं। इस संक्रमण को Chorioamnionitis, Endometritis और कभी-कभी Funisitis के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- Chorioamnionitis: भ्रूण की झिल्ली (Fetal Membranes) और अम्नियोटिक द्रव का संक्रमण
- Endometritis: गर्भाशय की आंतरिक परत का संक्रमण
- Funisitis: नाल (Umbilical Cord) का संक्रमण
Intrauterine Infection कारण (Causes of Intrauterine Infection)
गर्भाशय अंदरूनी संक्रमण के मुख्य कारण निम्न हैं:
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बैक्टीरियल संक्रमण (Bacterial Infection): - Escherichia coli (E. coli)
 - Streptococcus Group B
 - Staphylococcus aureus
 
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वायरल संक्रमण (Viral Infection): - Cytomegalovirus (CMV)
 - Herpes simplex virus (HSV)
 
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सर्जिकल या प्रसव से संबंधित कारण (Procedural Causes): - गर्भपात (Abortion)
 - Cesarean Delivery (सी-सेक्शन)
 - Invasive procedures जैसे कि Amniocentesis
 
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अन्य जोखिम कारक (Other Risk Factors): - प्री-टर्म लेबर (Preterm Labor)
- लंबे समय तक जलन रहना (Prolonged Rupture of Membranes)
- गर्भाशय में पहले से मौजूद संक्रमण
 
Intrauterine Infection लक्षण (Symptoms of Intrauterine Infection)
गर्भाशय अंदरूनी संक्रमण के लक्षण अक्सर हल्के से गंभीर तक हो सकते हैं:
- तेज बुखार (High Fever)
- पेट और निचले पेट में दर्द (Abdominal/Pelvic Pain)
- गर्भ के चारों ओर जलन या असहजता (Discomfort around Uterus)
- असामान्य योनि स्राव (Abnormal Vaginal Discharge)
- प्रसव के समय तेज पसीना और कमजोरी (Sweating, Weakness)
- नवजात शिशु में संक्रमण के संकेत (Signs in Newborn)
Intrauterine Infection कैसे पहचाने (How to Diagnose)
गर्भाशय अंदरूनी संक्रमण की पहचान निम्न तरीकों से की जाती है:
- शारीरिक जाँच (Physical Examination)
- रक्त परीक्षण (Blood Tests): CBC, CRP, Blood Culture
- अल्ट्रासाउंड (Ultrasound): Amniotic Fluid में संक्रमण की जांच
- स्राव का कल्चर (Vaginal Discharge Culture)
- अम्नियोटिक द्रव की जाँच (Amniotic Fluid Test)
Intrauterine Infection इलाज (Treatment of Intrauterine Infection)
गर्भाशय अंदरूनी संक्रमण का उपचार समय पर शुरू करना बहुत जरूरी है:
- एंटीबायोटिक थेरेपी (Antibiotic Therapy)
- Ampicillin, Gentamicin, Clindamycin जैसी दवाएँ
 
- हॉस्पिटलाइजेशन (Hospitalization)
- गंभीर मामलों में माँ और शिशु की निगरानी
 
- प्रसव को नियंत्रित करना (Managing Labor)
- अगर गर्भावस्था पूरी है तो डिलीवरी कराई जा सकती है
 
- इंफेक्शन की रोकथाम (Preventive Measures)
- किसी भी सर्जरी या जन्मपूर्व प्रक्रिया में साफ-सफाई
 - समय पर गर्भ जाँच और प्रीनेटल देखभाल
 
घरेलू उपाय (Home Remedies / Supportive Care)
- हल्का और पोषक भोजन (Light and Nutritious Diet)
- पर्याप्त आराम (Adequate Rest)
- डॉक्टर की अनुमति से हाइड्रेशन बनाए रखना (Maintain Hydration)
- तनाव कम करना और प्रजनन स्वास्थ्य का ध्यान रखना
ध्यान दें: घरेलू उपाय केवल सहायक हैं; मुख्य इलाज एंटीबायोटिक और डॉक्टर द्वारा निर्धारित होता है।
सावधानियाँ (Precautions)
- असुरक्षित गर्भपात से बचें (Avoid Unsafe Abortion)
- प्रसव या सर्जरी के दौरान संक्रामक सुरक्षा अपनाएं (Maintain Sterility)
- किसी भी असामान्य लक्षण पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ (Seek Immediate Medical Attention)
- समय पर प्रीनेटल चेकअप कराएँ (Regular Prenatal Checkups)
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
Q1: क्या Intrauterine Infection गर्भपात का कारण बन सकता है?
हाँ, यदि समय पर इलाज न किया जाए तो यह गर्भपात या प्री-टर्म डिलीवरी का कारण बन सकता है।
Q2: क्या यह नवजात शिशु को प्रभावित करता है?
हाँ, संक्रमण शिशु में सेप्सिस, निमोनिया या अन्य संक्रमण पैदा कर सकता है।
Q3: इसका इलाज बिना अस्पताल में रहकर किया जा सकता है?
सिर्फ हल्के मामलों में ही संभव है। गंभीर मामलों में हॉस्पिटलाइजेशन जरूरी है।
Q4: क्या गर्भवती महिलाएँ इससे बच सकती हैं?
हाँ, साफ-सफाई, समय पर प्रीनेटल चेकअप और सुरक्षित प्रसव से बचाव संभव है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Intrauterine Infection (गर्भाशय अंदरूनी संक्रमण) एक गंभीर लेकिन समय पर पहचान और उपचार से पूरी तरह नियंत्रित होने योग्य स्थिति है। इसका मुख्य कारण संक्रमण है, और इसका प्रभाव माँ और शिशु दोनों पर पड़ सकता है। सावधानी, समय पर डॉक्टर से परामर्श और उचित इलाज से इसके गंभीर परिणामों को रोका जा सकता है।