Khushveer Choudhary

Kidney Calcification: कारण, लक्षण, इलाज और सावधानियाँ

किडनी कैल्सिफिकेशन (Kidney Calcification) का अर्थ है — किडनी के ऊतकों (Kidney Tissues) में कैल्शियम (Calcium) या कैल्शियम लवणों (Calcium Salts) का असामान्य रूप से जमा होना।

यह स्थिति किडनी की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकती है और कभी-कभी किडनी स्टोन (Kidney Stones) या किडनी फेलियर (Kidney Failure) जैसी जटिलताओं का कारण भी बन सकती है।

किडनी कैल्सिफिकेशन को चिकित्सा भाषा में नेफ्रोकेल्सिनोसिस (Nephrocalcinosis) भी कहा जाता है।
यह एक रोग नहीं, बल्कि किसी अन्य बीमारी या मेटाबोलिक असंतुलन का परिणाम होता है।

किडनी कैल्सिफिकेशन क्या होता है ? (What is Kidney Calcification?)

जब शरीर में कैल्शियम या फॉस्फेट का स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है, तो यह किडनी में जाकर जमा होने लगता है।
ये जमाव किडनी के टिश्यू या ट्यूब्यूल्स (Renal Tubules) में ठोस रूप ले लेते हैं, जिससे किडनी की फिल्टर करने की क्षमता धीरे-धीरे घट जाती है।

यदि यह केवल किडनी टिश्यू में सीमित हो, तो इसे नेफ्रोकेल्सिनोसिस (Nephrocalcinosis) कहते हैं,
और यदि यह मूत्र नलिकाओं में क्रिस्टल के रूप में बनता है, तो उसे किडनी स्टोन (Nephrolithiasis) कहा जाता है।

किडनी कैल्सिफिकेशन के प्रकार (Types of Kidney Calcification)

  1. मेडुलरी नेफ्रोकेल्सिनोसिस (Medullary Nephrocalcinosis):
    किडनी के अंदरूनी हिस्से (Medulla) में कैल्शियम जमाव।
    यह सबसे सामान्य प्रकार है।

  2. कॉर्टिकल नेफ्रोकेल्सिनोसिस (Cortical Nephrocalcinosis):
    किडनी की बाहरी सतह (Cortex) में कैल्शियम का जमाव।
    यह अक्सर संक्रमण या ऊतक क्षति के कारण होता है।

किडनी कैल्सिफिकेशन के कारण (Causes of Kidney Calcification)

कई बीमारियाँ या स्थितियाँ इस समस्या को जन्म दे सकती हैं, जैसे:

  1. हाइपरकैल्सेमिया (Hypercalcemia):
    शरीर में कैल्शियम का अत्यधिक स्तर।

  2. हाइपरपैराथायरॉइडिज्म (Hyperparathyroidism):
    पैराथायरॉइड हार्मोन का असंतुलन जिससे कैल्शियम स्तर बढ़ता है।

  3. किडनी ट्यूबलर एसिडोसिस (Renal Tubular Acidosis):
    मूत्र में एसिड के संतुलन में गड़बड़ी।

  4. विटामिन D का अत्यधिक सेवन (Excess Vitamin D Intake)

  5. सारकॉइडोसिस (Sarcoidosis) या ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis)

  6. लंबे समय तक मूत्र संक्रमण (Chronic Urinary Tract Infection)

  7. किडनी रोग (Chronic Kidney Disease)

  8. कैल्शियम या फॉस्फेट की दवाओं का अधिक उपयोग।

किडनी कैल्सिफिकेशन लक्षण (Symptoms of Kidney Calcification)

प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण नहीं होते, लेकिन जब कैल्सिफिकेशन बढ़ने लगता है, तब निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं:

  1. पीठ या साइड में दर्द (Flank or Back Pain)
  2. मूत्र में खून आना (Hematuria)
  3. बार-बार पेशाब आना (Frequent Urination)
  4. मूत्र का रंग बदलना (Dark or Cloudy Urine)
  5. मूत्र में जलन (Burning Sensation while Urinating)
  6. थकान और कमजोरी (Fatigue and Weakness)
  7. मांसपेशियों में दर्द या ऐंठन (Muscle Pain or Cramping)
  8. कभी-कभी बुखार (If infection is present)

किडनी कैल्सिफिकेशन कैसे पहचाने (Diagnosis of Kidney Calcification)

1. इमेजिंग टेस्ट (Imaging Tests):

  • अल्ट्रासाउंड (Ultrasound): कैल्शियम जमाव का प्रारंभिक पता लगाने में मदद करता है।
  • सीटी स्कैन (CT Scan): कैल्सिफिकेशन की सटीक स्थिति और मात्रा बताता है।
  • एक्स-रे (X-Ray): बड़े जमाव की पहचान के लिए।

2. रक्त जांच (Blood Tests):

  • कैल्शियम (Calcium), फॉस्फेट (Phosphate) और पैराथायरॉइड हार्मोन (PTH) के स्तर की जांच।

3. मूत्र जांच (Urine Tests):

  • मूत्र में कैल्शियम, ऑक्सलेट, फॉस्फेट, या संक्रमण की उपस्थिति जांची जाती है।

4. किडनी फंक्शन टेस्ट (Kidney Function Test):

  • Creatinine और Blood Urea Nitrogen (BUN) की जांच से किडनी की कार्यक्षमता मापी जाती है।

किडनी कैल्सिफिकेशन इलाज (Treatment of Kidney Calcification)

इलाज का उद्देश्य है —
कैल्शियम का जमाव रोकना, मूल कारण का इलाज करना, और किडनी की कार्यक्षमता को सुरक्षित रखना।

1. मूल कारण का इलाज (Treat Underlying Cause):

  • अगर कारण हाइपरकैल्सेमिया है, तो कैल्शियम कम करने की दवाएँ दी जाती हैं।
  • अगर पैराथायरॉइड ग्रंथि जिम्मेदार है, तो सर्जरी से उसका उपचार किया जा सकता है।
  • संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं।

2. दवाइयाँ (Medications):

  • थायाजाइड डायूरेटिक्स (Thiazide Diuretics): मूत्र से कैल्शियम उत्सर्जन कम करते हैं।
  • सोडियम बाइकार्बोनेट (Sodium Bicarbonate): अम्लता को नियंत्रित करने में सहायक।

3. डाइट कंट्रोल (Diet Management):

  • कैल्शियम और सोडियम का सेवन सीमित करें।
  • ऑक्सलेट युक्त खाद्य पदार्थों जैसे पालक, चाय, चॉकलेट का सेवन घटाएँ।

4. डायलिसिस (Dialysis):

  • यदि किडनी की कार्यक्षमता बहुत कम हो जाए।

घरेलू उपाय (Home Remedies – सहायक उपाय)

  1. पर्याप्त पानी पिएँ (Drink Plenty of Water) – शरीर से कैल्शियम और टॉक्सिन बाहर निकालने में मदद करता है।
  2. नमक का सेवन सीमित करें।
  3. प्राकृतिक मूत्रवर्धक (Natural Diuretics) जैसे नारियल पानी, नींबू पानी, और तरबूज का रस लें।
  4. विटामिन D और कैल्शियम सप्लीमेंट डॉक्टर की सलाह के बिना न लें।
  5. शुगर और प्रोसेस्ड फूड से परहेज करें।

सावधानियाँ (Precautions)

  1. बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी कैल्शियम या विटामिन D सप्लीमेंट न लें।
  2. पानी की कमी (Dehydration) से बचें।
  3. संक्रमण के लक्षण दिखने पर तुरंत जांच कराएँ।
  4. नियमित ब्लड और यूरिन टेस्ट करवाते रहें।
  5. डॉक्टर की सलाह के अनुसार डाइट और दवाओं का पालन करें।

रोकथाम (Prevention of Kidney Calcification)

  1. पर्याप्त पानी पिएँ (2–3 लीटर प्रतिदिन)
  2. संतुलित आहार लें – कैल्शियम और फॉस्फेट का संतुलन बनाए रखें।
  3. धूम्रपान और शराब से परहेज करें।
  4. हाई ब्लड प्रेशर और शुगर नियंत्रित रखें।
  5. किडनी पर असर डालने वाली दवाओं से बचें।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. क्या किडनी कैल्सिफिकेशन खतरनाक है?
A. प्रारंभिक अवस्था में यह खतरनाक नहीं होता, लेकिन बिना इलाज यह किडनी फेलियर का कारण बन सकता है।

Q2. क्या किडनी कैल्सिफिकेशन और किडनी स्टोन एक ही हैं?
A. नहीं, कैल्सिफिकेशन किडनी टिश्यू में कैल्शियम का जमाव है जबकि स्टोन मूत्र मार्ग में ठोस पथरी होती है।

Q3. क्या यह स्थिति ठीक हो सकती है?
A. हाँ, यदि कारण समय पर पहचाना और नियंत्रित कर लिया जाए तो किडनी की कार्यक्षमता बचाई जा सकती है।

Q4. क्या पानी पीने से मदद मिलती है?
A. हाँ, पर्याप्त पानी पीने से कैल्शियम और अन्य अपशिष्ट बाहर निकलते हैं।

Q5. क्या यह बच्चों में भी हो सकता है?
A. हाँ, जन्मजात मेटाबोलिक विकार या विटामिन D की अधिकता से बच्चों में भी हो सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

किडनी कैल्सिफिकेशन (Kidney Calcification) एक गंभीर लेकिन नियंत्रण योग्य स्थिति है।
यदि समय रहते सही कारण की पहचान कर ली जाए और आहार व जीवनशैली में सुधार किया जाए,
तो किडनी को लंबे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है।
नियमित जांच, संतुलित आहार और पर्याप्त जल सेवन इस रोग की सबसे प्रभावी रोकथाम हैं।


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