कुरु रोग एक अत्यंत दुर्लभ, प्रगतिशील एवं घातक तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) की विकृति है। इस रोग का नाम ‘कुरु’ उन स्थानीय भाषा में “कमपकपाना” या “काँपना” (trembling/shivering) के अर्थ से लिया गया है।
यह मुख्यतः Fore people नामक समुदाय में पाया गया था, जो पूर्वी पापुआ न्यू गिनी (Papua New Guinea) के पहाड़ी क्षेत्र में रहते थे।
कुरु रोग प्रायः उस समय पनपा जब इस समुदाय में शव‐भक्षण / सांस्कृतिक अनुष्ठानों के अंतर्गत मरे हुए लोगों का मस्तिष्क या अन्य ऊतक खाने की प्रथा थी।
Kuru क्या होता है (What happens)
कुरु रोग में निम्नलिखित प्रक्रियाएँ होती हैं:
- यह रोग एक प्रायोन (prion) नामक दूषित/गलत रूप से फोल्डेड प्रोटीन के कारण होता है, जिसे शरीर में किसी संक्रमण‐नुमा जीवाणु (bacteria/virus) की तरह नहीं देखा जाता।
- इन प्रायोन प्रोटीनों के कारण मस्तिष्क की कोशिकाएं धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, विशेषकर मस्तिष्क के समन्वय (coordination) एवं संतुलन (balance) से संबंध रखने वाले भाग, जैसे सेरिबेलम (cerebellum)।
- मस्तिष्क में स्पोंज-जैसी (sponge-like) छिद्रयुक्त बनावट (spongiform encephalopathy) बन जाती है।
- रोग की शुरुआत के बाद निरंतर विकार बढ़ता जाता है, संवाद स्थापित करना कठिन हो जाता है, चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है, अंततः पूरी तरह निर्बल एवं बिस्तर निरोपित (bedridden) अवस्था में पहुँच जाता है।
Kuru कारण (Causes)
- मुख्य कारण है प्रायोन (प्रिमैन प्रोटीन का विकृत रूप) जो संक्रमित ऊतन (mostly मस्तिष्क) द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में स्थानांतरित हो सकता है।
- विशेष रूप से, इन्होंने पाया गया कि यह रोग विशेष तौर पर तब फैला जब मृतक का मस्तिष्क या अन्य ऊतक खाने की प्रथा थी।
- वर्तमान में यह रोग लगभग समाप्त अवस्था में है क्योंकि उस प्रथा को बंद कर दिया गया है।
- अन्य जोखिम-कारक: चूंकि प्रायोन मस्तिष्क में विशेष रूप से अधिक होते हैं, इसलिए मस्तिष्क खाने वालों (वर्ग विशेष: महिलाएँ एवं बच्चे) में रोग अधिक पाया गया।
Kuru लक्षण (Symptoms of Kuru)
प्रारंभिक लक्षण
- जोड़ों में दर्द, सिर में दर्द (headache) और हल्की कांपना।
- चलने-फिरने में अस्थिरता (unsteady gait), संतुलन बिगड़ना (imbalance)।
मध्यवर्ती तथा उन्नत लक्षण
- शरीर में कंपकंपी (tremors), अनियंत्रित मांसपेशियों में झटके (myoclonus)।
- चलना बंद हो जाना (unable to walk), बैठने-उठने में अक्षम।
- बोलने में दिक्कत, निगलने में कठिनाई (dysphagia) जिससे कमजोरी एवं कुपोषण (malnutrition) हो सकता है।
- अचानक बिना कारण हँसने-रोने की प्रवृत्ति (emotional instability, involuntary laughter/crying) — इसलिए इसे कभी “laughing sickness” कहा गया।
अन्तिम अवस्था
- पूर्णतः बिस्तर पर रहने योग्य होकर पोषण की कमी, फेफड़ों में संक्रमण (प्नयूमोनिया) जैसी जटिलताएँ।
- रोग प्रगति के बाद मृत्यु अनिवार्य होती है।
Kuru कैसे पहचाने (How to recognize)
- यदि किसी व्यक्ति को चलने-फिरने में असहजता, लगातार बढ़ती कांप, बोलने या निगलने में दिक्कत हो रही हो तो स्वास्थ्य सलाह लें।
- चिकित्सक द्वारा न्यूरोलॉजिकल परीक्षण (neurological exam) तथा एमआरआई, ईईजी जैसे परीक्षण शामिल हो सकते हैं, साथ ही अन्य संभावित कारणों को हटाकर (rule out) निदान किया जाता है।
- हालांकि विशेषतः, इस रोग का निदान बहुत कठिन है क्योंकि प्रायोन रोगों में निदान के लिए पोस्टमॉर्टम (मृत पश्चात्) मस्तिष्क ऊतकों का परीक्षण संभव है।
क्यों रोके (Prevention)
- चूंकि कुरु रोग मुख्य रूप से मानव मस्तिष्क/मानव ऊतकों के सेवन (cannibalism) से प्रसारित हुआ था, इसलिए इसे रोकने का सबसे महत्वपूर्ण उपाय है मानव ऊतकों का सेवन बंद करना।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों द्वारा इस प्रकार की संस्कार-प्रथाएँ समाप्त कर दी गई थीं, जिससे नई घटनाएँ लगभग बंद हो गईं।
- अन्य सामान्य सावधानी: तंत्रिका-रोगों में असामान्य लक्षण होने पर जल्द चिकित्सीय सलाह लेना।
घरेलू उपाय (Home remedies)
चूंकि कुरु रोग का अभी तक कोई उपचार (cure) उपलब्ध नहीं है, इसलिए “घरेलू उपाय” इस विशेष रोग में रोग को ठीक नहीं कर सकते, केवल रोग-प्रगति को रोका नहीं जा सकता।
हालाँकि, कुछ सहायक-उपाय निम्न हो सकते हैं (विशेष चिकित्सकीय सलाह के बाद):
- रोगी को सुरक्षित, आरामदायक एवं स्वच्छ वातावरण देना।
- पोषण-सहायता (nutritional support) देना ताकि कमजोरी और कुपोषण से जटिलताएँ न हों।
- मसल्स कांपना (tremors) एवं चलने-फिरने में कठिनाई के लिए फिजिकल थेरेपी एवं चलने-सहायता (walking aid) देना।
- निगलने में दिक्कत होने पर चिकित्सक-सहायता से निगलने-सहायक उपाय (swallowing therapy) लेना।
- संक्रमण (जैसे फेफड़ों की प्नयूमोनिया) की रोकथाम: रोगी को संपर्क से आने वाले संक्रमण से दूर रखना, स्वच्छता और संक्रमण-निरोधक उपाय अपनाना।
सावधानियाँ (Precautions)
- यदि किसी समुदाय में मानव ऊतकों के सेवन की प्रथा है, उसे पूरी तरह बंद या नियंत्रित करना जरूरी है।
- स्वस्थ व्यक्ति में इस रोग का खतरा बहुत कम है क्योंकि प्रसार-माध्यम आज लगभग समाप्त हो चुका है।
- चिकित्सीय परीक्षण आवश्यक हैं — किसी भी चलने-भ्रम या संतुलन-खराबी की स्थिति में तुरंत न्यूरोलॉजिस्ट (neurologist) से मिलें।
- संबंधित व्यक्ति को देखभाल-सहायता देने वालों को संक्रमण-निगरानी और स्वच्छता-उपायों का ध्यान रखना चाहिए।
- मिथ्या-सूचनाओं से बचें क्योंकि यह बहुत दुर्लभ रोग है; सामाजिक या सांस्कृतिक आचरण के आधार पर भय-प्रचार न हो।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: क्या कुरु रोग का इलाज संभव है?
उत्तर: नहीं — वर्तमान में कुरु रोग का कोई प्रभावी इलाज नहीं है। यह रोग घातक है।
प्रश्न 2: कितना समय लगता है इस रोग के लक्षण दिखने में (इन्क्यूबेशन अवधि)?
उत्तर: संक्रमण के बाद लक्षण दिखने में औसतन लगभग 10-13 वर्ष लग सकते हैं, लेकिन कभी-कभी यह 50 वर्ष से भी अधिक हो सकता है।
प्रश्न 3: क्या यह रोग मानव-से-मानव सामान्य संपर्क से फैलता है?
उत्तर: नहीं — यह रोग सामान्य सामाजिक संपर्क से नहीं फैलता। मुख्य रूप से यह मानव मस्तिष्क या अन्य संक्रमित ऊतक के सेवन से फैलता है।
प्रश्न 4: क्या यह रोग आज भी पाया जाता है?
उत्तर: बहुत ही दुर्लभ है। क्योंकि प्रथा (मृत्युभोजन) अब बंद हो चुकी है, इसलिए नए मामलों की संख्या लगभग शून्य हो गई है।
प्रश्न 5: अन्य कौन-कौन से रोग प्रायोन द्वारा होते हैं?
उत्तर: हाँ — जैसे Creutzfeldt‑Jakob disease (CJD), Gerstmann‑Sträussler‑Scheinker syndrome (GSS) आदि।
निष्कर्ष
कुरु रोग एक दुर्लभ एवं जानलेवा प्रायोन-औषध रोग है जो मुख्य रूप से सांस्कृतिक प्रथाओं (विशेष रूप से शव-भक्षण) के कारण उत्पन्न हुआ था। क्योंकि उस प्रथा को समाप्त कर दिया गया है, आज यह रोग लगभग समाप्त अवस्था में है। हालांकि, इसने मानव स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है — विशेष रूप से प्रायोन रोगों (prion diseases) को समझने में। क्योंकि इसका कोई उपचार नहीं है, इसलिए रोकथाम ही प्रमुख उपाय है। अगर कभी किसी व्यक्ति में संतुलन-खराबी, अनियंत्रित कांप, बोलने/निगलने में कठिनाई जैसे लक्षण आएँ, तो तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेना आवश्यक है।
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