Khushveer Choudhary

Lacunar Stroke – कारण, लक्षण, इलाज और रोकथाम

लैक्यूनर स्ट्रोक (Lacunar Stroke) एक प्रकार का इस्‍कीमिक स्ट्रोक (Ischemic Stroke) होता है, जो मस्तिष्क की गहराई में स्थित छोटे रक्त वाहिकाओं (Small Blood Vessels) में अवरोध (Blockage) के कारण होता है।

यह मस्तिष्क के उन हिस्सों को प्रभावित करता है जो शरीर की गतिशीलता (Movement), संवेदना (Sensation), और सोचने-समझने की क्षमता (Cognition) को नियंत्रित करते हैं।

लैक्यूनर स्ट्रोक विशेष रूप से हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure), डायबिटीज़ (Diabetes), और धूम्रपान करने वालों में ज्यादा देखा जाता है।
यह स्ट्रोक का एक सबसे सामान्य छोटा प्रकार (Small Vessel Stroke) है, लेकिन अगर समय पर इलाज न किया जाए तो यह स्थायी विकलांगता या स्मृति हानि (Memory loss) का कारण बन सकता है।

लैक्यूनर स्ट्रोक क्या है? (What is Lacunar Stroke?)

लैक्यूनर स्ट्रोक एक छोटे क्षेत्र में रक्त प्रवाह रुकने (Blockage of blood flow in small arteries) के कारण होता है।
ये छोटी धमनियाँ मस्तिष्क के अंदर गहराई में मौजूद होती हैं और बेसल गैंग्लिया (Basal Ganglia), थैलेमस (Thalamus), पोंस (Pons) और आंतरिक कैप्सूल (Internal Capsule) जैसे हिस्सों को रक्त पहुँचाती हैं।

जब इनमें से कोई धमनी बंद हो जाती है, तो उस हिस्से में ऑक्सीजन की कमी (Lack of oxygen) से मस्तिष्क कोशिकाएँ मरने लगती हैं — जिसे लैक्यूनर इंफार्क्शन (Lacunar Infarction) कहा जाता है।

लैक्यूनर स्ट्रोक के कारण (Causes of Lacunar Stroke)

  1. उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure):
    लंबे समय तक हाई बीपी रहने से छोटी धमनियों की दीवारें मोटी और संकरी हो जाती हैं।

  2. मधुमेह (Diabetes Mellitus):
    शुगर लेवल बढ़ने से रक्त वाहिकाओं की दीवारें कमजोर हो जाती हैं।

  3. धूम्रपान और शराब (Smoking and Alcohol):
    निकोटीन और अल्कोहल रक्त प्रवाह और ऑक्सीजन आपूर्ति को बाधित करते हैं।

  4. उच्च कोलेस्ट्रॉल (High Cholesterol):
    रक्त में वसा जमा होने से धमनियाँ बंद हो सकती हैं।

  5. हृदय रोग (Heart Disease):
    अनियमित धड़कन या रक्त के थक्के स्ट्रोक का जोखिम बढ़ाते हैं।

  6. बढ़ती उम्र (Old age):
    55 वर्ष से अधिक आयु में जोखिम अधिक होता है।

  7. आनुवंशिक कारण (Genetic factors):
    परिवार में स्ट्रोक या हाई बीपी का इतिहास।

लैक्यूनर स्ट्रोक के लक्षण (Symptoms of Lacunar Stroke)

लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि मस्तिष्क का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ है। आम लक्षण इस प्रकार हैं:

  1. शरीर के एक तरफ कमजोरी या सुन्नपन (Hemiparesis)
  2. बोलने या समझने में कठिनाई (Speech problems)
  3. चेहरे का एक हिस्सा झुक जाना
  4. संतुलन खोना या चलने में कठिनाई
  5. दृष्टि धुंधली होना या दोहरी दिखाई देना
  6. अचानक चक्कर आना
  7. स्मृति या सोचने में समस्या (Cognitive impairment)
  8. निगलने में कठिनाई (Swallowing difficulty)

नोट: लैक्यूनर स्ट्रोक के लक्षण अक्सर छोटे या अस्थायी हो सकते हैं, लेकिन इन्हें कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

लैक्यूनर स्ट्रोक के प्रकार (Types of Lacunar Stroke)

  1. Pure Motor Stroke:
    केवल शरीर की गति पर असर (हाथ-पैर में कमजोरी)।

  2. Pure Sensory Stroke:
    केवल संवेदना पर असर (सुन्नपन, झुनझुनी)।

  3. Sensorimotor Stroke:
    गति और संवेदना दोनों प्रभावित होते हैं।

  4. Ataxic Hemiparesis:
    एक तरफ कमजोरी और संतुलन की समस्या।

  5. Dysarthria-Clumsy Hand Syndrome:
    बोलने में कठिनाई और हाथों की सटीक गति में समस्या।

लैक्यूनर स्ट्रोक का निदान (Diagnosis of Lacunar Stroke)

  1. न्यूरोलॉजिकल परीक्षण (Neurological Examination):
    डॉक्टर शरीर के मूवमेंट, रिफ्लेक्स और संवेदना की जांच करते हैं।

  2. CT स्कैन (CT Scan):
    मस्तिष्क में ब्लॉकेज या इंफार्क्शन को देखने के लिए।

  3. MRI (Magnetic Resonance Imaging):
    छोटे स्ट्रोक क्षेत्रों को पहचानने का सबसे सटीक तरीका।

  4. ब्लड टेस्ट:
    ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड क्लॉटिंग की जांच।

  5. इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram):
    हृदय की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन।

  6. डॉप्लर अल्ट्रासाउंड (Doppler Ultrasound):
    गर्दन की धमनियों में ब्लॉकेज का पता लगाने के लिए।

लैक्यूनर स्ट्रोक का इलाज (Treatment of Lacunar Stroke)

1. आपातकालीन उपचार (Emergency Treatment):

  • थ्रॉम्बोलिटिक थेरेपी (Thrombolytic therapy):
    यदि स्ट्रोक 3–4 घंटे के भीतर पता चल जाए, तो tPA (Tissue Plasminogen Activator) नामक दवा दी जाती है जो थक्का घोल देती है।

2. दवाइयाँ (Medications):

  • एंटीप्लेटलेट दवाएँ (Aspirin, Clopidogrel): थक्के बनने से रोकती हैं।
  • ब्लड प्रेशर कंट्रोल: ACE inhibitors, beta-blockers आदि।
  • कोलेस्ट्रॉल घटाने वाली दवाएँ (Statins): धमनियों को साफ रखने में मदद करती हैं।
  • ब्लड शुगर कंट्रोल: डायबिटीज के मरीजों में जरूरी है।

3. फिजिकल और ऑक्युपेशनल थेरेपी:

मांसपेशियों की ताकत, चलने और बोलने की क्षमता बहाल करने के लिए।

4. जीवनशैली सुधार (Lifestyle changes):

संतुलित आहार, व्यायाम, धूम्रपान व शराब से परहेज, तनाव कम करना।

लैक्यूनर स्ट्रोक की रोकथाम (Prevention of Lacunar Stroke)

  1. ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें।
  2. ब्लड शुगर की नियमित जांच करें।
  3. धूम्रपान और शराब से पूरी तरह बचें।
  4. कम वसा और कम नमक वाला आहार लें।
  5. नियमित व्यायाम करें।
  6. तनाव नियंत्रण में रखें।
  7. डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयाँ समय पर लें।

लैक्यूनर स्ट्रोक में सावधानियाँ (Precautions)

  • स्ट्रोक के बाद शरीर के किसी हिस्से में सुन्नपन को नजरअंदाज न करें।
  • डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयों को बिना सलाह बंद न करें।
  • हर 3-6 महीने में ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल की जांच करवाएं।
  • संतुलित दिनचर्या अपनाएँ और पर्याप्त नींद लें।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. क्या लैक्यूनर स्ट्रोक जानलेवा होता है?
A: आमतौर पर यह स्ट्रोक छोटा होता है और सही समय पर इलाज से जीवन को खतरा नहीं होता, लेकिन बार-बार होने से दिमाग पर स्थायी असर हो सकता है।

Q2. क्या लैक्यूनर स्ट्रोक से पूरी तरह ठीक हुआ जा सकता है?
A: हाँ, यदि जल्दी इलाज मिले तो अधिकांश मरीज पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।

Q3. क्या लैक्यूनर स्ट्रोक दोबारा हो सकता है?
A: हाँ, अगर रक्तचाप या शुगर नियंत्रित न किया जाए तो दोबारा हो सकता है।

Q4. क्या यह बुजुर्गों में ही होता है?
A: ज्यादातर बुजुर्गों में होता है, लेकिन आजकल हाई बीपी और डायबिटीज के कारण युवाओं में भी देखा जा रहा है।

Q5. लैक्यूनर स्ट्रोक और मिनी स्ट्रोक (TIA) में क्या फर्क है?
A: मिनी स्ट्रोक (Transient Ischemic Attack) में रक्त प्रवाह अस्थायी रूप से रुकता है और लक्षण कुछ समय में ठीक हो जाते हैं, जबकि लैक्यूनर स्ट्रोक में स्थायी क्षति होती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

लैक्यूनर स्ट्रोक (Lacunar Stroke) मस्तिष्क की छोटी धमनियों में अवरोध के कारण होने वाला इस्केमिक स्ट्रोक का एक रूप है।
यह भले ही “छोटा स्ट्रोक” कहलाता हो, लेकिन अगर इसे समय पर न पहचाना जाए तो यह स्थायी विकलांगता या स्मृति हानि का कारण बन सकता है।
नियमित जांच, ब्लड प्रेशर व शुगर नियंत्रण, और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इसे रोका जा सकता है।


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